
हजारीबाग/झारखंड: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हजारीबाग उपायुक्त (डीसी) को समन जारी किया है। यह मामला आदिम जनजाति बिरहोर के दो लोगों की मौत से जुड़ा है, जिनकी जान कथित रूप से एनटीपीसी चट्टी बरियातू कोल परियोजना के कारण हुई पर्यावरणीय समस्याओं के चलते गई। आयोग ने उपायुक्त को 10 फरवरी तक सशरीर उपस्थित होकर जवाब देने का निर्देश दिया है।
क्या है पूरा मामला?
हजारीबाग जिले के केरेडारी प्रखंड में एनटीपीसी (NTPC) चट्टी बरियातू कोल परियोजना के तहत खनन कार्य किया जा रहा है। इस क्षेत्र में रहने वाले आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के दो सदस्यों—किरणी बिरहोर और बहादुर बिरहोर—की मौत हो गई थी। आरोप है कि खनन से उत्पन्न धूल और प्रदूषण ने उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिससे उनकी जान गई।
इस घटना पर मानवाधिकार कार्यकर्ता मंटू सोनी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करवाई थी। शिकायत के बाद आयोग ने मामले को गंभीरता से लेते हुए नवंबर 2024 में उपायुक्त हजारीबाग से चार प्रमुख बिंदुओं पर छह सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी।
हालांकि, उपायुक्त कार्यालय से अब तक कोई संतोषजनक रिपोर्ट नहीं भेजी गई, जिसके चलते राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उपायुक्त को समन जारी कर दिया। यदि उपायुक्त 10 फरवरी से पहले आयोग द्वारा मांगे गए सभी सवालों के स्पष्ट जवाब भेज देते हैं, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से छूट मिल सकती है।
आयोग ने क्या सवाल पूछे हैं?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उपायुक्त हजारीबाग से चार प्रमुख सवालों के जवाब मांगे हैं:
- एनटीपीसी का खनन कार्य बिरहोर टोला, पगार में कब से चल रहा है?
- खनन से बिरहोर समुदाय के निवासियों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- बिरहोर समुदाय एनटीपीसी द्वारा निर्मित घरों में स्थानांतरित होने को तैयार क्यों नहीं हैं? क्या यह स्थान खनन से उत्पन्न प्रदूषण से सुरक्षित है?
- खनन शुरू होने के बाद से अब तक इस क्षेत्र में कितने लोगों की मृत्यु हुई है और प्रत्येक मृत्यु का कारण क्या था?
डीसी का बयान
हजारीबाग की उपायुक्त नैंसी सहाय ने कहा,
“हमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से समन मिला है। हम इस पर उपयुक्त जवाब देंगे।”
खनन से बढ़ी बिरहोर समुदाय की परेशानियां, स्वास्थ्य पर असर :
परियोजना के कारण उत्पन्न धूल, ध्वनि प्रदूषण और जल स्रोतों के दूषित होने की वजह से बिरहोर समुदाय के लोगों में सांस संबंधी बीमारियां, त्वचा रोग और कुपोषण जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि शुद्ध पानी और स्वच्छ हवा की कमी ने उनकी जिंदगी को और मुश्किल बना दिया है।
एनटीपीसी ने बिरहोर समुदाय के लोगों के लिए वैकल्पिक आवास बनाए हैं, लेकिन अधिकांश बिरहोर परिवारों ने वहां जाने से इनकार कर दिया। उनका कहना है कि यह स्थान खनन के प्रदूषण से सुरक्षित नहीं है और वे अपनी परंपरागत जीवनशैली छोड़कर किसी नए स्थान पर जाने को तैयार नहीं हैं।
बिरहोर समुदाय झारखंड की आदिम जनजातियों (Primitive Tribal Group – PTG) में से एक है, जिनकी आबादी लगातार घट रही है। सरकार ने इनकी सुरक्षा के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के कारण इनका पारंपरिक जीवन संकट में पड़ गया है।
स्थानीय सामाजिक संगठनों का कहना है कि एनटीपीसी ने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं।
खनन क्षेत्र में उड़ती धूल से खेती और वन्य जीवन प्रभावित हो रहा है।
जल स्रोतों में कोयले के अवशेष और केमिकल का रिसाव हो रहा है, जिससे पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है।
विस्थापन के बाद भी बिरहोर समुदाय को समान आजीविका के अवसर नहीं मिले।



