रामनवमी महासमिति के नेतृत्व पर बाहरी दखल क्यों? – अनुपम सिन्हा

हज़ारीबाग़ की परंपरा और विरासत पर मंडराता खतरा

हज़ारीबाग़: झारखंड का हज़ारीबाग़ रामनवमी के भव्य और अनुशासित आयोजन के लिए प्रसिद्ध है। यह सिर्फ़ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि संघर्ष, परंपरा और गर्व की जीवंत विरासत है। दशकों से यहाँ के मूल निवासी इस पर्व की गरिमा को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते आए हैं, लेकिन हाल के वर्षों में महासमिति के नेतृत्व पर बाहरी हस्तक्षेप की कोशिशें चिंता का विषय बन गई हैं।

महासमिति का ऐतिहासिक महत्व

हज़ारीबाग़ की रामनवमी महासमिति केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक परंपरा की रीढ़ है। इसके माध्यम से दशकों से रामनवमी का आयोजन किया जाता रहा है। जुलूसों का अनुशासित संचालन, अखाड़ों की परंपरा, धार्मिक उत्साह और सामाजिक समरसता—यह सब महासमिति के नेतृत्व की देन रही है।

लेकिन हाल ही में ऐसे लोग महासमिति के शीर्ष पदों के दावेदार बन रहे हैं, जिनका इस ऐतिहासिक आयोजन से कोई पुराना नाता नहीं रहा। वे या तो हाल ही में हज़ारीबाग़ में बसे हैं, या फिर उनका रामनवमी की परंपरा से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह स्थिति उन मूल निवासियों के लिए चिंता का कारण बन रही है, जिनके पूर्वजों ने इस परंपरा को जीवित रखने के लिए संघर्ष किया था।

क्या बाहरी नेतृत्व महासमिति के मूल्यों की रक्षा कर पाएगा?

यह सवाल हर हज़ारीबाग़वासी के मन में उठ रहा है—क्या जो लोग इस परंपरा का इतिहास नहीं जानते, वे इसके मूल्यों की रक्षा कर पाएंगे? क्या वे रामनवमी के आयोजन में वही समर्पण और भावनात्मक जुड़ाव रख पाएंगे, जो दशकों से स्थानीय लोगों में देखा गया है?

महासमिति का नेतृत्व केवल प्रशासनिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की सुरक्षा का दायित्व भी है। हज़ारीबाग़ की रामनवमी केवल भव्य जुलूसों और अखाड़ों का प्रदर्शन नहीं, बल्कि अनुशासन, धार्मिक सौहार्द्र और गौरव का प्रतीक है।

मूल निवासियों का हक़ क्यों छीना जा रहा है?

महासमिति का नेतृत्व हमेशा उन लोगों के हाथों में रहा, जो बचपन से रामनवमी की परंपरा को जीते आए हैं। उन्होंने इसे न केवल देखा है, बल्कि इसके लिए संघर्ष भी किया है। प्रशासन और समाज के दबावों के बीच इस आयोजन को सुरक्षित रखना आसान नहीं था।

अब जब बाहरी लोग महासमिति पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, तो यह उन परिवारों के लिए चिंता का विषय है, जिन्होंने इस विरासत को बचाने के लिए पीढ़ियों तक मेहनत की है। सवाल यह है कि क्या नेतृत्व का अधिकार उनका नहीं बनता, जिनके पूर्वजों ने इसे संरक्षित किया?

आक्रोश और विरोध के स्वर

स्थानीय लोगों के मन में इस बात को लेकर गहरी नाराजगी है। उनका मानना है कि महासमिति का नेतृत्व बाहरी हाथों में जाने से रामनवमी की मूल आत्मा ही समाप्त हो जाएगी।

कई सामाजिक संगठनों और धार्मिक नेताओं ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। उनका कहना है कि महासमिति का नेतृत्व उन्हीं के पास रहना चाहिए, जो इसके महत्व को समझते हैं और इसकी परंपराओं को सहेज सकते हैं।

क्या किया जाना चाहिए?

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, हज़ारीबाग़वासियों को जागरूक होने की ज़रूरत है। महासमिति के नेतृत्व को बाहरी हस्तक्षेप से बचाने के लिए संगठित प्रयास किए जाने चाहिए। कुछ महत्वपूर्ण कदम इस प्रकार हो सकते हैं—

  1. स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ाई जाए: महासमिति के चुनावों में हज़ारीबाग़ के मूल निवासियों को अधिक संख्या में भाग लेना चाहिए।
  2. परंपरा से जुड़े लोगों को नेतृत्व मिले: केवल उन्हीं लोगों को नेतृत्व सौंपा जाए, जो वर्षों से इस आयोजन से जुड़े रहे हैं।
  3. सामाजिक चेतना जगाई जाए: इस विषय पर जनमत तैयार किया जाए ताकि बाहरी दखल को रोका जा सके।
  4. प्रशासन को ज्ञापन दिया जाए: सरकार और प्रशासन को इस मुद्दे से अवगत कराते हुए उचित कार्रवाई की मांग की जाए।

हज़ारीबाग़ की रामनवमी केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है। इसे बचाने की ज़िम्मेदारी हर हज़ारीबाग़वासी की है। महासमिति का नेतृत्व बाहरी लोगों के हाथों में जाना इस पर्व की मूल आत्मा को खतरे में डाल सकता है। इसलिए, यह समय है कि हज़ारीबाग़ के लोग एकजुट होकर अपनी परंपरा और विरासत की रक्षा के लिए आगे आएं।

AJIT KUMAR Barnwal

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